धर्म-कर्म
आस्था और परंपरा का महोत्सव छठ महापर्व आज से
छठी मैया की कृपा से बहु को मिला प्यारा सा बच्चा : बीना
वाराणसी। आज से छठ महापर्व की शुरुआत हो रही है, जिसका पहला दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। छठ व्रत को लेकर आस्थावान श्रद्धालुओं में गहरा विश्वास और समर्पण देखने को मिलता है। वाराणसी की बीना तिवारी बताती हैं कि इस व्रत के कारण उनकी कई मनोकामनाएं पूरी हुई हैं। बीना बताती हैं कि आज से 35 साल पहले उनकी दो संतान खराब/मिसकैरेज हो गई, तब उनकी मकान मालकिन ने छठ मैया का व्रत रखकर उनके लिए कामना की थी। छठी मैया की कृपा से बीना को संतान प्राप्त हुई।
बीना कहती हैं कि दो साल पहले उन्होंने अपने छोटे बेटे के लिए छठ पूजा का संकल्प लिया था, क्योंकि उनकी बहू को थायराइड के कारण संतान नहीं हो रही थी। छठ मैया की कृपा से अब उनकी बहू को भी एक प्यारा बच्चा प्राप्त हुआ है। इस विश्वास और आस्था के प्रतीक छठ महापर्व का आयोजन हर साल लाखों श्रद्धालुओं के जीवन में खुशियां लाता है।
चार दिनों की परंपरा और नियम:
1. पहला दिन (5 नवंबर) – नहाय-खाय: व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसमें व्रतधारी नमक रहित भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन लौकी की सब्जी और चावल चूल्हे पर पकाए जाते हैं और इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
2. दूसरा दिन (6 नवंबर) – खरना: इस दिन सूर्यास्त के बाद व्रती पीतल के बर्तन में गाय के दूध की खीर बनाते हैं और इस खीर को मौन रहकर ग्रहण करते हैं। इस दिन के बाद व्रती को 36 घंटों तक निर्जल और निराहार रहना होता है।
3. तीसरा दिन (7 नवंबर) – संध्या अर्घ्य: व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस अवसर पर ठेकुआ, फल, और अन्य प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। इस दिन भी व्रतधारी पूरी रात निर्जल रहते हैं।
4. चौथा दिन (8 नवंबर) – उषा अर्घ्य: महापर्व के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। महिलाएं प्रातः गंगा घाट पर जाकर पूजा-अर्चना करती हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करती हैं।
कोसी भरने की परंपरा: छठ महापर्व के दौरान कई घरों में कोसी भरने की परंपरा होती है। यह मान्यता है कि किसी शुभ कार्य की पूर्ति होने पर घर में कोसी भरी जाती है और लोग पूरी रात जागकर पूजा करते हैं।
छठ पूजा का पौराणिक महत्व: पंडित विकास ने बताया कि छठ पूजा की प्राचीन कथाएं महाभारत और रामायण काल से जुड़ी हैं। महाभारत में सूर्य पुत्र कर्ण के सूर्य को अर्घ्य देने की कथा मिलती है, जिससे वे महान योद्धा बने। वहीं, द्रौपदी ने भी पांडवों की खोई हुई संपत्ति वापस पाने के लिए छठ व्रत रखा था। श्रीराम और माता सीता ने भी राज्याभिषेक से पूर्व छठ व्रत रखा था।
छठ महापर्व का यह कठिन व्रत नियम और श्रद्धा का प्रतीक है। इसे पूरी निष्ठा से करने वाले भक्तों को सूर्य देव और छठी मैया की विशेष कृपा मिलती है और उनके जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।