वाराणसी
15 लाख बच्चों को खिलाई जायेगी पेट के कीड़े निकालने की दवा
वाराणसी। जिले में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस, गुरुवार (01 फरवरी) को मनाया जाएगा। इस अवसर पर जिले में एक से 19 साल तक के 15 लाख से अधिक बालक-बालिकाओं को कृमि से मुक्ति के लिए पेट के कीड़े निकालने की दवा एल्बेंडाजोल खिलाई जाएगी।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संदीप चौधरी ने बताया कि जनपद में गुरुवार को 15 लाख से अधिक बच्चों को पेट के कीड़े निकालने की दवा खिलाने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने कहा कि इसमें एक से पांच साल तक के सभी पंजीकृत बच्चों के साथ ही छह से 19 साल तक के स्कूल जाने वाले सभी बालक-बालिकाओं को उनके विद्यालय में दवा खिलायी जायेगी। ब्लाक चोलापुर एवं शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैतपुर के पांच वार्डों को छोड़कर जिले के सभी सरकारी सहायता प्राप्त, प्राइवेट स्कूलों, मदरसों में शिक्षकों से दवा खिलाने में सहयोग लिया जायेगा।
अभियान में उन बच्चों को भी दवा खिलायी जायेगी जो स्कूल नहीं जाते है। साथ ही ईंट-भट्ठों पर कार्य करने वाले श्रमिकों के बच्चों को भी आंगनबाड़ी केंद्रों पर दवा खिलाई जाएगी। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. संजय राय ने बताया कि गुरुवार को कंपोजिट विद्यालय, सुन्दरपुर में मुख्य चिकित्सा अधिकारी की मौजूदगी में बच्चों को दवा खिलाकर कार्यक्रम की शुरूआत की जायेगी।

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस पर (01 फरवरी को) दवा खाने से छूट गये बच्चों के लिए 05 फरवरी को मॉप अप राउंड आयोजित होगा। इसमें छूटे हुए बच्चों को भी दवा से आच्छादित कर लक्ष्य को शत-प्रतिशत पूरा करने का प्रयास किया जायेगा। उन्होंने कहा कि पेट में कीड़े होने से बच्चे कुपोषित हो जाते हैं। उनमें खून की कमी हो जाती है, जिसके कारण बच्चे कमजोर होने लगते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को इस परेशानी से बचाने के लिए कीड़े निकालने की दवा उन्हें जरूर खिलाएं। जिला विद्यालय निरीक्षक व बेसिक शिक्षा अधिकारी ने भी अभिभावकों से अपील की है कि वह अपने बच्चों को पेट के कीड़े निकालने की दवा अवश्य खिलवायें ।
दवा खाने का तरीका-एक से दो साल के बच्चों को आधी गोली अच्छी तरह से पीस कर पानी में मिलाकर खिलाएं। दो से तीन साल के बच्चों को एक पूरी गोली पीस कर पानी के साथ खिलाएं। तीन से 19 साल के बालक-बालिकाओं को एक पूरी गोली चबाकर खानी होगी।
कृमि मुक्ति के फायदे- स्वास्थ्य और पोषण में सुधार, रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि, एनीमिया नियंत्रण, सीखने की क्षमता में सुधार।
