वाराणसी
बनवास समाप्ति के बाद चारों भाईयों का मिलन देख सजल हो गई आँखें
वाराणसी। श्री आदि रामलीला लाटभैरव वरूणा संगम काशी की सुप्रसिद्ध भरत मिलाप की लीला बुधवार को अर्द्धरात्रि में राजघाट (भैसासुर त्रिमुहानी) पर परम्परागत स्थान पर परम्परागत ढंग से सोल्लास सुसम्पन्न हो गई। हजारों दर्शकों ने ‘रामचन्द्र की जै, लखनलाल की जै, चारों भाईयों की जै, हर हर महादेव’ के गगनभेदी जयघोषों के बीच चारों भाईयों राम, भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न को 14 वर्षों के वनवास के कालखण्ड के अन्त के बाद मनोहारी ढंग से विशेष पारम्परिक शैली में जब एक दूसरे के गले से गले मिलते देखा तो भावविभोर हो गये। चारों तरफ से यहाँ तक की मकानों की दूसरी और तीसरी मंजिलों से भी पुष्प वर्षा होने लगी। बिजली से सजे आकर्षक मंच पर रंगीन रोशनी में मिलाप की अद्भुत छटा देखकर नर-नारी, बाल, वृद्ध, युवा सभी मंत्रमुग्ध हो गए। इस अवसर पर समिति के प्रधानमंत्री कन्हैया लाल यादव एडवोकेट, व्यास पंडित दयाशंकर त्रिपाठी, केवल कुशवाहा, विकास यादव, श्याम सुंदर सिंह, उत्कर्ष कुशवाहा आदि भारी संख्या में रामलीला समिति के पदाधिकारी, कार्यकर्ता संभ्रात नागरिक भरत मिलाप की उस एक झलक पाने के लिए आतुर थे। जिन्होंने इस अवसर पर चारों भाईयों को पुष्प भेंट किए और माल्यार्पण किए।
मिलाप के पूर्व श्री राम, लक्ष्मण, जानकी अपने बन्दर, भालुओं व भक्त हनुमान सहित निषादराज आश्रम (धनेसरा मठ) से पुष्पक विमान द्वारा भरत मिलाप स्थल राजघाट पहुँचे। उसी समय अयोध्या (विशेश्वरगंज) की ओर से कुलगुरू वशिष्ठ के साथ भरत और शत्रुघ्न भी पहुँचे। फिर क्या था, पहले गुरू वशिष्ठ से जयघोषों के बीच राम और लक्ष्मण मिले, तदुपरांत भूमि पर पड़े भरत और शत्रुघ्न को जब उठाकर भगवान राम और लक्ष्मण ने गले लगाया तो भातृप्रेम का यह अनूठा दृश्य देखकर खुशी से अनेक भक्तों की आँखें छलछला आई। वे भावविभोर हो गये और इस अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति कर जीवन को धन्य माना।
मिलाप के पश्चात चारों भाई सदल बल अयोध्या (विशेश्वरगंज) आये। उनके साथ मनोहारी शोभायात्रा में विविध लागों व स्वांगों को भी शामिल किया गया था। बैण्ड-बाजों व शहनाई की धुन में चल रही इस शोभायात्रा को देखने के लिए देर रात्रि में भी सड़क के दोनों ओर श्रद्धालुओं, नर-नारी, बच्चों का समूह जगह-जगह खड़ा था, और जयघोष करते हुए पुष्पवर्षां कर रहे थे। इस अवसर पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे।
