गोरखपुर
गोरखपुर दक्षिणांचल में डीएपी खाद का संकट, किसान परेशान
गोरखपुर। दक्षिणांचल के किसानों के बीच डीएपी खाद का संकट गहराता जा रहा है। खजनी तहसील क्षेत्र के साधन सहकारी समिति सतुआभार में हालात यह हैं कि हजारों किसान कतारों में खड़े हैं, पर खाद की बोरी गिनी-चुनी है। लगभग 240 बोरी डीएपी खाद की सीमित आवक के बीच किसानों की संख्या हजारों में होने से सचिव और समिति के कर्मचारी दोनों ही असहाय नजर आ रहे हैं। छोटे-बड़े सभी किसानों की जरूरत समान है, लेकिन वितरण असमानता और सीमित स्टॉक के चलते विवाद की स्थिति बन रही है।
सुबह से समिति के बाहर लगी लंबी कतारें किसानों की पीड़ा बयां कर रही हैं। किसी की बुवाई रुकी है तो किसी के खेत में तैयार फसल खाद के अभाव में मुरझा रही है। सचिव विद्यासागर ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “अगर मुझे पर्याप्त खाद की आवक मिल जाए, तो मैं हर किसान को संतुलित मात्रा में डीएपी उपलब्ध करा सकता हूं। लेकिन मौजूदा स्थिति में जब मांग हजारों बोरी की और आवक सिर्फ 240 बोरी की हो, तो किसे दूं और किसे छोड़ दूं? यही सबसे बड़ी परेशानी है।”

सचिव और कर्मचारी सुबह से देर शाम तक किसानों की भीड़ में व्यवस्था संभालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन स्थिति काबू में नहीं है। कई किसानों ने आरोप लगाया कि उन्हें बार-बार समिति तक चक्कर लगाना पड़ रहा है, फिर भी खाद नहीं मिल पा रही। वहीं, कुछ बड़े किसानों ने यह भी कहा कि छोटे किसानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि उनके खेत छोटे हैं और फसल पर सीधा असर पड़ता है।
डीएपी खाद की कमी सिर्फ खजनी या सतुआभार की समस्या नहीं है, बल्कि दक्षिणांचल के कई इलाकों में यही हालात बने हुए हैं। रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही खाद की मांग तेजी से बढ़ी है। सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि खाद आपूर्ति पर्याप्त है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है।
प्रशासन के सहयोग से समिति द्वारा कतारबद्ध व्यवस्था बनाकर एक-एक बोरी खाद का वितरण कराया गया। इसके बावजूद किसानों में असंतोष साफ झलक रहा था। कई किसानों ने बताया कि वे तीन-तीन दिन से आ रहे हैं, लेकिन फिर भी खाद नहीं मिली।
इस संकट ने न केवल किसानों की बुवाई पर असर डाला है, बल्कि सरकार की ग्रामीण कृषि नीति पर भी सवाल उठाए हैं। ग्रामीण अंचलों में साधन सहकारी समितियां किसानों की रीढ़ मानी जाती हैं, पर जब उन्हीं संस्थानों में आपूर्ति बाधित हो जाए, तो किसानों के विश्वास पर गहरी चोट पड़ती है।
अब जरूरत इस बात की है कि प्रशासनिक और सरकारी स्तर पर तत्काल पहल की जाए। अगर डीएपी खाद की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की गई तो आने वाले हफ्तों में हालात और बिगड़ सकते हैं। किसानों के धैर्य की परीक्षा अब चरम पर है — और इस परीक्षा में सरकार की नीतिगत संवेदनशीलता की असली परख भी होने जा रही है।
गोरखपुर के दक्षिणांचल का यह दृश्य केवल खाद की कमी का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की थकान का प्रतीक है, जो खेतों तक राहत पहुंचाने में हर बार देर कर देती है।
