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वाराणसी

गंगा में बहाई जा रही सिल्ट, पारिस्थितिकीय परिवर्तन का बढ़ा खतरा

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वाराणसी में गंगा नदी में भारी मात्रा में सिल्ट बहाई जा रही है, जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। नगर निगम द्वारा दशकों से अपनाई जा रही अवैज्ञानिक पद्धति से नदी को नुकसान पहुँच रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे गंगा की तलहटी उथली होगी और बाढ़ का खतरा बढ़ेगा। साथ ही, नदी के स्वरूप में बदलाव से भूजल प्रवाह भी प्रभावित हो रहा है। नगर निगम प्रशासन दशकों पुरानी इस पद्धति के कारण गंगा के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने पर लगा हुआ है।

संसाधनों और धन का उद्देश्य आमतौर पर समस्याओं के समाधान में होता है, लेकिन यहाँ उलटा प्रभाव देखा जा रहा है। करोड़ों रुपये और मानव-संसाधनों का उपयोग समस्या को बढ़ाने में किया जा रहा है, बिना भविष्य की चिंता किए।

गंगा के घाटों पर हाल ही में बड़े जेनरेटर और मोटर पंपों के माध्यम से जमी सिल्ट को सफाई के नाम पर फिर से नदी में डाला जा रहा है। यह पहली बार नहीं हो रहा है; दशकों से बाढ़ के बाद गाद निस्तारण के लिए यही तरीका अपनाया जाता रहा है।

इस प्रक्रिया से गंगा की संरचना, आकृति और पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। निरंतर उथली होती नदी से बाढ़ का खतरा साल-दर-साल बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि वार्षिक बाढ़ का खतरा वैज्ञानिक उपायों से कम किया जा सकता है, लेकिन नगर निगम पुराने तरीकों पर ही टिके हुए हैं।

गंगा और असि नदी का बदलता स्वरूप

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आईआईटी बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. उदयकांत चौधरी के अनुसार, असि नदी पहले असि घाट पर गंगा से संगम करती थी और वर्षांत में नदी के प्रवाह को संतुलित रखती थी। अब इस संगम क्षेत्र को बदल दिया गया है और अस्सी घाट पर मिट्टी का जमाव शुरू हो गया है। इस कारण पूरे वाराणसी क्षेत्र में गंगा की प्रवाह संरचना और भूजल रेखाएँ बदल रही हैं।

सिल्ट में मौजूद कार्बनिक तत्व खेतों के लिए खाद के रूप में उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन इसे सीधे नदी में बहाना खतरनाक है। पानी में बढ़ती कार्बनिक मात्रा बैक्टीरिया और कवक पैदा करती है, जिससे जल में ऑक्सीजन की मात्रा घटती है और जलीय जीवन के लिए खतरा उत्पन्न होता है। इसके अलावा, जेनरेटरों से निकलने वाली हानिकारक गैसें पूरे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह कृत्य गंगा की पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत हानिकारक है और नदी के स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन असर डाल सकता है।

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