गोरखपुर
‘योगी बाबा’ के आँगन में समृद्धि और स्नेह का दीप

गोरखपुर। आज धनतेरस है। यह पर्व, जो सुख, समृद्धि और आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की जयंती के रूप में मनाया जाता है, सिर्फ धातुओं की खरीदारी या लक्ष्मी-गणेश के आगमन तक सीमित नहीं है। गोरखपुर में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘कर्मक्षेत्र’ और आध्यात्मिक केंद्र, गोरखनाथ मंदिर के आंगन में, यह पर्व एक गहरी भावनात्मक और सामाजिक संदेश लेकर आता है। यह संदेश है – ‘अंतिम व्यक्ति’ तक समृद्धि की किरण पहुँचाने का।
गोरखपुर, जिसे अब ‘सीएम सिटी’ के नाम से भी जाना जाता है, यहाँ की गलियों, बाजारों और विशेषकर वनटांगिया गांवों में इस पर्व का एक अनूठा उल्लास दिखाई देता है। यह उल्लास सिर्फ परंपरा का नहीं, बल्कि पिछले कुछ वर्षों में आए जीवन-बदलाव का है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अपने मठ की परंपरा और संत की भूमिका का निर्वहन करते हुए, हर त्योहार को एक सामाजिक उत्सव में बदल देते हैं। उनका ध्यान हमेशा उन लोगों पर केंद्रित रहा है, जिन्हें समाज ने सदियों तक हाशिये पर रखा विशेषकर वनटांगिया समुदाय।
उनके लिए, धनतेरस और दीपावली केवल एक दिन का पर्व नहीं, बल्कि एक ‘संकल्प’ है। एक संकल्प, उन ‘वनटांगिया’ परिवारों को मुख्यधारा से जोड़ने का, जिन्हें राजस्व ग्राम का दर्जा तक नहीं मिला था। वर्षों तक जंगल में गुमनाम ज़िंदगी जीने वाले ये लोग आज गर्व से खुद को ‘योगी बाबा’ के दुलारे जन कहते हैं। हर साल दीपावली पर, जब मुख्यमंत्री खुद उनके बीच पहुँचते हैं, बच्चों को उपहार देते हैं, मिठाई बाँटते हैं और उनके घरों में दीये जलाकर रोशनी करते हैं, तो यह महज एक सरकारी कार्यक्रम नहीं रह जाता; यह एक पिता तुल्य संत का अपने बच्चों के प्रति स्नेह बन जाता है।
इस धनतेरस पर, गोरखपुर का बाजार ‘वोकल फॉर लोकल’ की भावना से भरा है। मुख्यमंत्री की अपील पर, लोग चीन से आयातित मूर्तियों और उत्पादों के बजाय, स्थानीय कारीगरों के टेराकोटा, मिट्टी के दीयों और स्वदेशी वस्तुओं को खरीद रहे हैं। यह खरीदारी सिर्फ सामान की नहीं है, बल्कि स्थानीय कारीगरों के जीवन में समृद्धि का ‘धन’ लाने की भावना से की गई ‘भागीदारी’ है।
हाल ही में, सीएम योगी ने गोरखपुर में 160 गरीब परिवारों को फ्लैटों की चाबियाँ सौंपी। यह किसी भी गरीब के लिए धनतेरस का सबसे बड़ा तोहफा है— एक पक्की छत, एक ‘अपना आशियाना’। उनके शब्द गूंजते हैं कि यह आवास केवल ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि “जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षण” है।
यह धनतेरस गोरखपुर में एक भावुक कहानी कहता है: एक संत, जो सत्ता के शीर्ष पर है, लेकिन जिसने अपनी कर्मभूमि के सबसे कमजोर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रण लिया है। जब गोरखपुर के मठ की परंपरा से निकलकर, मुख्यमंत्री अपने ‘वनटांगिया’ परिवार के बीच दीया जलाते हैं, तो वह समृद्धि का दीप केवल एक घर में नहीं, बल्कि पूरे समाज के हृदय में जलाते हैं। यह स्नेह, यह अपनापन ही इस सीएम सिटी के धनतेरस का सबसे अनमोल ‘धन’ है।