गाजीपुर
कम बारिश ने बढ़ाई किसानों की चिंता

धान की खेती पर संकट के बादल
गाजीपुर। जिले के बहरियाबाद क्षेत्र में इस साल मानसून की बेरुखी ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। जुलाई महीना बीतने को है, लेकिन अब तक झमाझम बारिश नहीं हुई, जिससे धान की बुवाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। खेत सूखे पड़े हैं और किसानों के चेहरों पर मायूसी की लकीरें साफ नजर आ रही हैं।
धान की खेती, जो पूरी तरह से मानसून पर निर्भर होती है, अब किसानों के लिए सिरदर्द बन गई है। जिन किसानों के पास निजी सिंचाई साधन हैं, केवल वे ही किसी तरह धान की फसल की शुरुआत कर पा रहे हैं। लेकिन अधिकांश किसान नहरों में पानी न छोड़े जाने से पूरी तरह लाचार और बेबस हैं।
बुवाई में देरी, खेतों की तैयारी भी मुश्किल
धान की रोपाई के लिए खेतों में भरपूर पानी जरूरी होता है ताकि मिट्टी नरम हो सके। लेकिन बारिश न होने के कारण मिट्टी सख्त बनी हुई है और खेतों को तैयार करना बेहद कठिन हो गया है। पौधों को रोपने के बाद भी उन्हें लगातार पानी की ज़रूरत होती है, जिसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही है। परिणामस्वरूप, पौधे या तो सूखने लगे हैं या उनका विकास ठप पड़ गया है।
समय से न हो सकी रोपाई, उपज पर मंडराया संकट
धान की रोपाई का समय जुलाई के पहले सप्ताह से अगस्त के मध्य तक माना जाता है, लेकिन मौसम की अनिश्चितता के कारण किसान समय से रोपाई शुरू नहीं कर पाए हैं। ऐसे में फसल के परिपक्व होने का समय घट जाएगा, जिससे दाने छोटे रह सकते हैं और कुल उपज में भारी गिरावट की आशंका है।
किसानों पर बढ़ा आर्थिक बोझ
वर्षा के अभाव में किसानों को पंपसेट और अन्य सिंचाई साधनों का सहारा लेना पड़ रहा है, जिससे डीजल और बिजली की लागत में बढ़ोतरी हो रही है। सीमांत और गरीब किसानों के लिए यह एक बड़ा आर्थिक झटका है। फसल खराब होने की स्थिति में उन्हें न तो लागत वसूल होगी और न ही मुनाफा, जिससे कर्ज का बोझ बढ़ सकता है।
कीट व रोगों का खतरा भी बढ़ा
जल संकट से जूझ रही फसलें कीटों और बीमारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाती हैं। कमजोर पौधे जल्दी कीटों की चपेट में आ जाते हैं और सूखे के हालात में कई नए कीट भी सक्रिय हो जाते हैं, जो फसलों को और नुकसान पहुंचाते हैं।
मिट्टी की सेहत पर भी असर
लगातार सूखे के कारण मिट्टी की नमी कम हो रही है और उसकी पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता घटती जा रही है। इससे न केवल मौजूदा फसल, बल्कि भविष्य की फसलें भी प्रभावित होंगी।
समाधान की ओर कदम जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि इस संकट से उबरने के लिए सरकार और कृषि विभाग को मिलकर कार्य करना होगा। जल संरक्षण की तकनीकों को बढ़ावा देना, सिंचाई के बेहतर प्रबंध करना और कम पानी में तैयार होने वाली धान की किस्मों को बढ़ावा देना समय की मांग है। वरना, आने वाले समय में यह संकट देश की खाद्य सुरक्षा को भी चुनौती दे सकता है।