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वाराणसी

सारनाथ में निकली भगवान बुद्ध की अस्थि अवशेष शोभायात्रा

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श्रीलंकाई नृत्य बना आकर्षण का केंद्र

वाराणसी। सारनाथ स्थित मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर के 94वें वार्षिकोत्सव के तीसरे दिन बुधवार को भगवान बुद्ध की पवित्र अस्थि अवशेष की शोभायात्रा निकाली गई। यह यात्रा महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के तत्वावधान में आयोजित हुई, जिसमें श्रीलंकाई वाद्य यंत्रों की मधुर धुन और फूलों की वर्षा ने माहौल को भक्तिमय बना दिया।

विहाराधिपति भिक्षु आर. सुमित्तानंद थेरो के नेतृत्व में दोपहर 12:30 बजे शोभायात्रा की शुरुआत हुई। अस्थि अवशेष को सजाए गए हाथी के हौदे पर रखा गया था, जबकि वियतनामी बौद्ध भिक्षु उसे लेकर चल रहे थे। शोभायात्रा में सबसे आगे धर्मचक्र मुद्रा में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित वाहन था, जिसके पीछे तीन रथों पर वियतनामी भिक्षु और अनुयायी श्रद्धा के साथ आगे बढ़ रहे थे।

मार्ग में श्रीलंकाई वाद्य यंत्रों की गूंज और पारंपरिक नृत्य लोगों के आकर्षण का केंद्र बने रहे। शोभायात्रा में शामिल हजारों वियतनामी बौद्ध अनुयायी हाथों में फूल और पंचशील ध्वज लेकर ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ के जयकारे लगाते चल रहे थे। रास्ते में श्रद्धालु फूल बरसाकर स्वागत कर रहे थे।

शोभायात्रा मुख्य चौराहा, तिब्बती बौद्ध मंदिर, आकाशवाणी तिराहा, चौखंडी स्तूप, संग्रहालय और पुरातात्विक खंडहर परिसर से होती हुई धमेख स्तूप की परिक्रमा कर वापस मूलगंध कुटी मंदिर परिसर में पहुंची।

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मंदिर पहुंचने के बाद बौद्ध भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर धर्मचक्र सूत्र पाठ किया। इस अवसर पर महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव भिक्षु पी. शिबली थेरो, भिक्षु शीलवंश, भिक्षु मैत्री, संजय मौर्य, प्रवीण श्रीवास्तव, डा. चंद्रशेखर सिंह, अनिल सोनकर सहित वियतनाम, थाईलैंड, श्रीलंका, म्यांमार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र से आए अनेक बौद्ध अनुयायी उपस्थित रहे।

श्रीलंकाई नृत्य बना आकर्षण का केंद्र

शोभायात्रा में शामिल श्रीलंकाई कलाकारों ने पारंपरिक परिधानों में अपने देशी वाद्य यंत्रों की ताल पर नृत्य प्रस्तुत किया। महिला कलाकारों का समूह जब मंचन कर रहा था, तब श्रद्धालु और पर्यटक मोबाइल कैमरों से पल कैद करने में जुटे रहे।

हजारों वियतनामी अनुयायियों ने बढ़ाई शोभा

करीब पांच हजार से अधिक वियतनामी बौद्ध अनुयायियों ने इस शोभायात्रा में भाग लिया। सभी अनुयायी हाथों में फूल और पंचशील झंडे लिए ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ का जाप करते हुए चल रहे थे, जिससे पूरा क्षेत्र भक्तिभाव से सराबोर हो गया।

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