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धर्म-कर्म

गोधूलि बेला में होता है तुलसी-विष्णु का पवित्र मिलन

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तुलसी विवाह से मिलता है कन्यादान का पुण्य, दूर होती हैं वैवाहिक बाधाएँ

वाराणसी। हिंदू धर्म में तुलसी माता के रूप में पूजनीय हैं, लेकिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी से पूर्णिमा तक तुलसी को पुत्री मानकर भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से विवाह कराया जाता है। यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी गहरी आस्था से जुड़ी है।

विष्णु पुराण और पद्म पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में तुलसी विवाह का विस्तृत वर्णन मिलता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और इसी के साथ मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। तुलसी विवाह केवल एक पूजा नहीं बल्कि एक पवित्र व्रत माना गया है। इस व्रत को करने से कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

शास्त्रों के अनुसार तुलसी विवाह से वैवाहिक जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। विवाहित महिलाओं को यह व्रत अखंड सौभाग्य प्रदान करता है, जबकि कन्याओं को श्रीकृष्ण जैसे आदर्श वर की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

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तुलसी न केवल पूजा का अनिवार्य अंग है, बल्कि पापों के नाश और वायु शुद्धि का प्रतीक भी है। गले में तुलसी की माला धारण करना धर्मपरायणता का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय तुलसी धारण करता है, उसे वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

विज्ञान भी मानता है कि तुलसी वायु को शुद्ध करती है और वातावरण में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाती है। इसीलिए घर के आंगन या दरवाजे पर तुलसी का पौधा लगाना शुभ माना गया है।

विवाह की तैयारी करते समय यह भावना रखें कि आप स्वयं लक्ष्मी और विष्णु का विवाह करा रहे हैं। पूरे परिवार और समाज को शामिल करें ताकि यह परंपरा सामूहिक उत्सव का रूप ले सके। विवाह के समय मन को प्रसन्न रखें, जल्दबाज़ी या दिखावे से बचें। पूजा के समापन पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को कृतज्ञता के साथ प्रणाम करें।

यह समय गोधूलि बेला का होता है, जब गायें चरकर घर लौटती हैं। मान्यता है कि प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागकर सृष्टि संचालन का कार्य पुनः प्रारंभ करते हैं। तुलसी विवाह काल में वातावरण में विष्णु और लक्ष्मी तत्व अत्यधिक सक्रिय रहते हैं, इसलिए संध्या बेला में तुलसी विवाह किया जाता है ताकि इन दोनों तत्वों का संयुक्त लाभ प्राप्त हो सके।

अस्वीकरण:
उल्लेखित सभी उपाय, कथन और सुझाव पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं। जयदेश न्यूज़ इनकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता। पाठकों से अपेक्षा है कि वे इन तथ्यों को केवल संदर्भ के रूप में देखें और व्यक्तिगत निर्णय स्वयं लें।

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