वाराणसी
रक्षाबंधन: 29 साल बाद बन रहा दुर्लभ योग, ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत फलदायक

वाराणसी। इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व कई मायनों में अत्यंत विशेष रहेगा। 9 अगस्त को मनाया जाने वाला भाई-बहन के स्नेह का यह पर्व इस बार न केवल शुभ मुहूर्तों से भरा हुआ है, बल्कि 29 वर्षों बाद समसप्तक योग जैसे दुर्लभ संयोग भी बन रहे हैं।
बीएचयू के प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय और आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार इस बार रक्षाबंधन के दिन भद्रा का प्रभाव नहीं रहेगा। बहनें पूरे दिन भाइयों को राखी बांध सकेंगी और पर्व को बिना किसी विघ्न के पूरे उल्लास के साथ मना सकेंगी। इस वर्ष श्रावणी पूर्णिमा की तिथि नौ अगस्त को उदया काल में होने के कारण रक्षाबंधन का पर्व उसी दिन मनाया जाएगा।
विशेष बात यह है कि सात वर्षों बाद ऐसा अवसर आया है जब रक्षाबंधन पर भद्रा और पंचक दोनों का कोई असर नहीं होगा। यह स्थिति इसे धार्मिक दृष्टि से और भी अधिक पवित्र और फलदायक बनाती है। इसके अलावा आयुष्मान, सौभाग्य, बुधादित्य, विमल राज योग जैसे दस फलदायी योग भी इस दिन बन रहे हैं।
29 वर्षों बाद शनि और सूर्य का समसप्तक योग बनने जा रहा है। रक्षाबंधन के दिन शनि मीन राशि और सूर्य कर्क राशि में रहेंगे। यह ज्योतिषीय स्थिति शुभ कार्यों को सिद्धि प्रदान करती है। वहीं मंगल के कन्या राशि में प्रवेश से भाई-बहन के संबंध और भी सशक्त होंगे और उनके जीवन की बाधाएं दूर होंगी।
इस बार राखी बांधने का शुभ समय सुबह ब्रह्म मुहूर्त 5:29 बजे से शुरू होगा। सर्वोत्तम समय सुबह 6:06 से 8:20 बजे तक रहेगा। इसके बाद विजय मुहूर्त 10:47 से 11:58 बजे तक और अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:59 से 12:53 तक रहेगा।
रक्षाबंधन को वैदिक पद्धति से मनाने की परंपरा आज भी जीवित है। वैदिक राखी में दूर्वा, अक्षत, केसर, चंदन और सरसों के दाने का प्रयोग होता है। इन पांच वस्तुओं को रेशमी वस्त्र में बांधकर बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, जो उन्हें नकारात्मक शक्तियों से बचाती है और दीर्घायु का आशीर्वाद देती है।
इस तरह रक्षाबंधन 2025 न केवल भावनात्मक दृष्टि से बल्कि ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत विशेष होगा। शुभ संयोगों से युक्त यह पर्व भाई-बहनों के रिश्ते में और मजबूती और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेगा।