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वाराणसी

मासिक धर्म को लेकर बदल रही सोच, स्कूल घर-परिवार में खुलकर करती हैं चर्चा

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रिपोर्ट – प्रदीप कुमार

‘अंतर्राष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस’ (28 मई) पर विशेष

जिला महिला चिकित्सालय स्थित ‘साथिया केन्द्र’ में हर माह आती हैं 600 से अधिक किशोरियां

किशोरियों-युवतियों के साथ युवक भी अब इस मुद्दे पर हुये बेहद संवेदनशील और सजग

इस वर्ष की थीम ‘वर्ष 2030 तक मासिक धर्म को जीवन का एक सामान्य तथ्य बनाना है’

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वाराणसी। आर्य महिला इंटर कॉलेज की राधिका (16) बताती हैं कि पीरियड्स या मासिक धर्म को लेकर समाज में धीरे-धीरे सोच बदल रही है। अब हम स्कूल, घर-परिवार में इस पर खुल कर चर्चा करते हैं। यदि कुछ भी समस्या होती है तो हम जिला महिला चिकित्सालय में स्थित ‘साथिया केंद्र’ की परामर्शदाता सारिका चौरसिया दीदी से बात करते रहते हैं। वसंत कन्या डिग्री कॉलेज की दीपशिखा (19) ने कहा कि मासिक धर्म अब बोझ नहीं रहा है। यह प्राकृतिक प्रवत्ति है जो करीब 12वीं साल से ही लड़कियों में शुरू हो जाती है। यदि शुरुआत में ही इसको लेकर संकोच नहीं तोड़ा गया तो आगे चलकर कुछ समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके अलावा किशोरों में भी यह विषय सामान्य हो गया है। डीएवी कॉलेज के दिनकर, प्रदीप आयुष्मान और सौरभ जैसे कई किशोर भी मासिक धर्म पर अपने सहपाठियों के साथ खुलकर चर्चा कर रहे हैं।
इसका ही नतीजा है कि जिला महिला चिकित्सालय में स्थित ‘साथिया केंद्र’ में हर माह लगभग 600 किशोरियां आती हैं। वह अपने पीरियड्स के बारे में निःसंकोच चर्चा करती हैं और जरूरी सलाह भी लेती हैं। ऐसी ही अन्य किशोरियों, युवतियों को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के प्रति और जागरूक करने के लिए हर साल 28 मई को ‘अन्तराष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस’ मनाया जाता है। एक्शन ऐड के अनुसार इस वर्ष दिवस की थीम ‘वर्ष 2030 तक मासिक धर्म को जीवन का एक सामान्य तथ्य बनाना है’ निर्धारित की गई है। इसका उद्देश्य व्यापक लक्ष्य के लिए एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां कोई भी व्यक्ति 2030 तक मासिक धर्म के कारण पीछे न रहे।
साथिया केंद्र की परामर्शदाता सारिका चौरसिया का कहना है कि ‘एक ऐसा भी दौर था जब किशोरियां व युवतियां मासिक धर्म के बारे में बात करने में भी संकोच करती थीं। पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में किसी को नहीं बताती थीं। नतीजा होता था कि उन्हें तमाम तरह की बीमारियां घेर लेती थीं। लेकिन अब आधुनिक समाज में मासिक धर्म पर बात करना, उस पर चर्चा करना और उपायों का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इसका ही नतीजा है कि किशोरियों-युवतियों के साथ युवक भी अब इस मुद्दे पर बेहद संवेदनशील और सजग हो गए हैं। उन्होंने कहा कि माहवारी स्वच्छता दिवस 28 मई को इसलिए मनाया जाता है क्योंकि महिलाओं और लड़कियों को औसतन प्रति माह पाँच दिन मासिक धर्म होता है। मासिक धर्म का चक्र औसतन 28 दिन होता है। इसलिए मई का 28वां दिन जो साल का पाँचवाँ महीना होता है, इसी वजह से यह दिवस 28 मई को मनाया जाता है।
वह बताती हैं कि जिला महिला चिकित्सालय में यह केन्द्र वर्ष 2015 से चल रहा है। उनके केन्द्र में प्रतिदिन 20 से 25 औसतन किशोरियां आती हैं। दिन प्रतिदिन इसकी संख्या भी बढ़ रही है। मतलब साफ है कि मासिक धर्म जैसे गंभीर मुद्दे पर किशोरियां अब बेझिझक चर्चा कर रही हैं। वह बेझिझक अपनी समस्याओं को हमें बताती हैं। हालांकि कुछ ऐसी भी होती हैं जो शुरू-शुरू में अपनी मां अथवा परिवार की किसी महिला सदस्य के साथ आती हैं। ऐसी किशोरियां शुरू में बात करने में थोड़ा संकोच करती हैं लेकिन जब उन्हें यह समझाया जाता है कि संकोच कर यदि वह अपनी समस्या के बारे में खुल कर नहीं बतायेंगी तो उनका सही उपचार नहीं हो सकेगा और यह उनके लिए घातक होगा। तब वह अपना संकोच त्याग कर अपनी समस्या पर खुलकर बात करती हैं। फिर उनकी समस्याओं को जानने के बाद उन्हें उचित सलाह दी जाती है। साप्ताहिक आयरन की गोली खाने के लिए भी प्रेरित किया जाता है।
सारिका बताती है कि पीरियड्स आने की सही उम्र 12 साल होती है हालांकि कई लड़कियों को आठ साल की उम्र या 15 साल की उम्र में भी मासिक धर्म शुरू हो जाते हैं। वहीं मासिक धर्म बंद होने की उम्र 45 से 50 साल होती है। उन्होंने बताया कि मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता, संतुलित व स्वस्थ खानपान, अधिक से अधिक पानी पिएं, ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन का सेवन करें। जागरूकता के उद्देश्य से स्कूलों व कॉलेजों में किशोरी स्वास्थ्य मंच के माध्यम से चित्रकला, वाद-विवाद, निबंध, परिचर्चा आदि गतिविधियां की जा रही हैं।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी बताते हैं कि सरकार के प्रयासों और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत चलाये जा रहे राष्ट्रीय किशोर स्वस्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) के सार्थक परिणाम आ रहे हैं। किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर चलाये जा रहे कार्यक्रमों की ही देन है कि उनमें पीरियड्स के प्रति जागरुकता बढ़ी है। एसीएमओ व नोडल अधिकारी डॉ एके मौर्या बताते हैं कि विद्यालयों में स्वास्थ्य टीम किशोरियों को इसके बारे में जागरुक करने के साथ-साथ उचित सलाह भी देती हैं। कबीरचौरा स्थित जिला महिला व पुरुष चिकित्सालय में ‘साथिया केन्द्र’ का संचालन किया भी जा रहा है।
क्या कहती है एनएफ़एचएस की रिपोर्ट – नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019 -21) की रिपोर्ट पर नजर डालें तो पता चलता है जिले में 15 से 24 वर्ष की 85.6 प्रतिशत किशोरियां/युवतियां पीरियड्स के दौरान स्वच्छता के आधुनिक तरीकों का प्रयोग कर रही हैं जबकि एन एफएचएस-4 (2015-16) की रिपोर्ट में यह महज 69.1 प्रतिशत ही रहा।

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