धर्म-कर्म
माता वाराही देवी के दर्शन से भक्तों को मिलती हैं कष्ट से मुक्ति
वाराणसी के वाराही देवी मंदिर के दर्शन से भक्तों को सभी कष्ट से मुक्ति मिलती है। वाराही देवी मंदिर को माता सती के 51 शक्तिपीठों में से 22 वां शक्तिपीठ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि, माता सती के निचले दांत यहीं गिरे थें और शक्तिपीठ के रूप में उत्पन्न हुए थें। यहां स्वयंभू की मूर्ति है। साल भर हिंदू माता के दर्शन का इंतजार करते रहते हैं। माता बाराही को भगवान शिव ने काशी की क्षेत्र पालिका में प्रकृति दण्ड नायिका के रूप में नियुक्त किया है।

माना जाता है कि इसी प्रकार काशी के क्षेत्रपाल के रूप में भैरव हैं। उसी तरह रात के समय वह क्षेत्र पालिका के रूप में रक्षा करती है, वह क्षेत्र पालिका के रूप में रक्षा करती है और 4 बजे वापस मंदिर लौट आती है और विश्राम करती हैं। इसलिए मंदिर केवल सुबह 6 से 9 बजे दर्शन के लिए खोला जाता है।


ऐसा माना जाता है कि वाराही माता दुर्गा का सातवां रूप है। 64 योगिनियों में 28 वें स्थान पर है। माता वाराही एक रात्रि देवता (रात की देवी) हैं और उन्हें कभी-कभी ध्रूमा वाराही (“अंधेरा वाराही”) और धूमावती (“अंधेरे की देवी”) भी कहा जाता है। तंत्र के अनुसार वाराही की पूजा सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले करनी चाहिए। माता दुर्गा की सेवा नायक हैं। इनका दर्शन मुख्य नवरात्रि के सातवें दिन किया जाता है।
