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भाजपा में तेज होगा पीढ़ी परिवर्तन का सिलसिला

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नया नेतृत्व उभारने पर जोर, ऐसे नेताओं को होगी मुश्किल

भाजपा में केंद्र-राज्यों के संगठन के साथ-साथ सरकारों में नया नेतृत्व उभारने के लिए पीढ़ी परिवर्तन का सिलसिला और तेज होगा। खासतौर से पार्टी की इस नीति का असर लोकसभा चुनाव में दिखेगा। आगामी लोकसभा चुनाव में दो बार चुनाव लड़ चुके नेताओं के लिए तीसरी बार टिकट हासिल करना बेहद मुश्किल होगा। अगर सामाजिक समीकरण के साथ विकल्पहीनता को मजबूरी सामने नहीं आई तो ऐसे ज्यादातर नेता भविष्य में नई भूमिका में दिखाई देंगे।
सूत्रों ने बताया कि हालांकि पीढ़ी परिवर्तन का सिलसिला नया नहीं है। साल 2014 में केंद्र की सत्ता में आते ही पार्टी ने इस ओर आगे कदम बढ़ाना शुरू किया था। लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी जिन राज्यों में सत्ता में आई, उनमें से ज्यादातर राज्यों में पार्टी ने पुराने चेहरे की जगह नए चेहरों को तरजीह दी। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में टिकट वितरण से लेकर सरकार गठन तक में पार्टी ने इस नीति के अमल में सख्ती दिखाई है।

तीन राज्यों से मिले अहम संकेत…

पार्टी जिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीती, वहां से इस नीति के संदर्भ में अहम संकेत मिलते हैं। मसलन तीनों ही राज्यों में सरकार के मुखिया के तौर पर पुराने दिग्गज चेहरों पर नए चेहरों को तरजीह दी गई। राजस्थान में तो पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को सीएम बनाया गया। अब सरकार गठन में मध्य प्रदेश के 61 फीसदी तो छत्तीसगढ़ के 55 फीसदी मंत्री पहली बार विधायक बनने वाले नेता हैं। राज्यों में इस बदलाव को भाजपा में आने वाले दिनों की तस्वीर के तौर पर देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि पार्टी इसी रणनीति पर आगे बढ़ती रहेगी।

नीति का दिखा लाभ, इसलिए आगे बढ़ा रहे

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संघ सूत्रों का कहना है कि भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन अभी शुरुआती दौर में है। हालिया पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष ने जाति जनगणना को मुद्दा बना कर भाजपा को घेरने की कोशिश की थी। विपक्ष इसलिए असफल हुआ क्योंकि वर्तमान भाजपा में सभी वर्ग के नेता हैं, राज्यों और केंद्र को सरकारों के साथ संगठन में पहले की तुलना में अधिक वगों को प्रतिनिधित्व मिला है। प्रधानमंत्री खुद अन्य तुलना में पिछड़ी जाति से आते हैं। । यही कारण है कि विपक्ष का दांव फेल हुआ है। इसलिए इस नीति पर सख्ती से आगे बढ़ने का फैसला किया गया।
लोकसभा चुनाव के लिए व्यापक रणनीति

पीढ़ी परिवर्तन के लिए भाजपा नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव के लिए व्यापक रणनीति बनाई है। पार्टी को योजना इसके सहारे वंशवाद पर प्रहार करने के साथ नए चेहरों को अवसर देकर नया नेतृत्व उभारने को है। ऐसे में तय किया गया है कि दो बार चुनाव लड़ चुके नेताओं को उसी स्थिति में टिकट दिया जाए, जब संबंधित नेता को उक्त संसदीय क्षेत्र में विकल्प नहीं हो। या सामाजिक समीकरण की दृष्टि से संबंधित नेता को टिकट दिए जाने के अलावा कोई विकल्प न हो।

हर वर्ग से नेतृत्व उभारने की कवायद…

संग सूत्रों का कहना है कि जाति की राजनीति की काट के लिए हर वर्ग से नेतृत्व उभारने की जरूरत है। संघ नहीं चाहता कि केंद्र और राज्यों में पार्टी के सामने नेतृत्व के स्तर पर शून्य का संकट हो। संघ की इच्छा हर वर्ग से नेताओं की एक श्रृंखला तैयार करने की है, जिसका अलग-अलग समय में जाति की राजनीति की काट के लिए इस्तेमाल किया जा सके। यह तभी संभव होगा जब पार्टी नेतृत्व पीढ़ी परिवर्तन के लिए सख्त रुख अपनाएगा।

सामाजिक कार्यों में उतारने की तैयारी

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संघ सूत्रों का कहना है कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा सामाजिक कार्यों की भी जिम्मेदारी लेगी। खासतौर पर जातिगत विषमता को दूर करने के लिए जमीनी स्तर पर बड़ा अभियान चलाएगी।

राजनीति सिर्फ टिकट और पद हासिल करने के लिए नहीं

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पूर्व एक अहम बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पार्टी को यह भ्रम तोड़ना चाहिए कि राजनीति का अर्थ सिर्फ चुनावों का टिकट हासिल कर विधायक, सांसद, मंत्री बनना है। तब प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि पद देते समय राजनीतिक अनुभव के रूप में विधायक, सांसद और मंत्री के रूप में निभाई गई जिम्मेदारी को ही मानक न माना जाए, बल्कि इस अनुभव में संगठन के लिए किए गए कायों को भी मानक माना जाए।
राजस्थान में मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल तय करते समय पहली बार संगठन के कार्यों को भी अनुभव का मानक माना गया। इसी नीति के तहत संगठन में सेवा देने वाले शर्मा की सीएम पद की लॉटरी लगी।

एक परिवार एक टिकट अब स्थाई नीति

आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी नेतृत्व ने एक परिवार एक टिकट के फॉर्मूले को स्थाई नीति बनाने का फैसला किया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि हालिया विधानसभा चुनाव में केंद्रीय राजनीति के दिग्गजों को मैदान में उतार कर पार्टी ने वंशवाद पर भी प्रहार किया था। ऐसे कई नेताओं को उनके रिश्तेदारों को सीट पर उम्मीदवार बनाया गया था। यह प्रयोग सफल रहा है। ऐसे में इस नीति को लोकसभा चुनाव में सख्ती से साथ लागू किया जाएगा।

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