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चन्दौली

दीयों की रोशनी से जगमगाया चंदौली, आस्था व उल्लास के साथ मनी दीपावली

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चंदौली। कार्तिक मास की अमावस्या तिथि सोमवार को दीपावली का पर्व पूरे जनपद सहित नगर पंचायत में आस्था व विश्वास के साथ पारंपरिक तरीके से मनाया गया। इस दौरान पूरे नगर के लोगों ने अपने-अपने घरों को आकर्षक विद्युत झालरों व असंख्य दीयों से रौशन किया। दीपावली पर्व को लेकर नगर में पूरे दिन चहल-पहल बनी रही। शाम को दुकानदारों ने अपने प्रतिष्ठान पर भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की।

बताते चलें कि दीपावली का संबंध भगवान श्री हरि विष्णुजी के वामन अवतार से है। वामन अवतार में भगवान श्री हरि ने जब राजा बलि से सब कुछ छीन लिया, तो बलि ने भगवान विष्णुजी को श्राप दिया कि “आपने धोखे से मेरा राज्य छीन लिया है। मैं महान शिवभक्त हिरण्यकश्यप का वंशज राजा बलि श्राप देता हूँ कि जो भी व्यक्ति सूर्य के नीच राशिगत होने पर अर्थात कार्तिक मास की धनतेरस, चौदस, दीपावली एवं पड़वा-दोज की रात्रि में मेरे गुरु अग्निश्वर शुक्र का स्मरण कर दीप+अवली (दीपावली) को रात्रि में दीपों की श्रृंखला अर्पित करेगा, वहाँ विष्णु पत्नी लक्ष्मी निवास करेगी और मेरे गुरुभाई राहु की कृपा बनी रहेगी। वहाँ कभी भी धन-सम्पदा की कमी नहीं आएगी।”

दीप अर्थात दीपक और अवली का अर्थ है श्रृंखला। अर्थात दीपावली की रात घर तथा निवास के नजदीक शिवालय में दीपों की अवली/श्रंखला बनाकर प्रज्ज्वलित करना होता है। शुक्र का वैदिक नाम अग्नि भी है। भगवान शिव से दीक्षित होने के कारण शुक्र को अग्निश्वर भी कहा गया है। दीपदान की परंपरा का आरंभ राहु ने अपने दैत्यगुरु शुक्राचार्य की प्रसन्नता के लिए किया था।

दीपावली की रात में स्वाति नक्षत्र होता है, जिसके स्वामी राहु हैं। इस उत्सव की रात दीपदान करने से शुक्र प्रसन्न होते हैं। शुक्राचार्य दैत्याचार्य हैं तथा राहु शुक्र के परम शिष्य हैं। इस ब्रह्मांड की सम्पूर्ण शक्ति, ऊर्जा और सम्पदा मानव को राहु ही प्रदान करते हैं। राहु के गुरु शुक्राचार्य को दीप अर्पित करने वाले के यहाँ सुख और स्वास्थ्य पर्याप्त होता है। दीपावली सदैव स्वाति नक्षत्र, जो कि राहु का नक्षत्र है, के अंतर्गत मनाई जाती है।

पौराणिक कथा के अनुसार युगों पहले जब समुद्र मंथन नहीं हुआ था और देवता व राक्षसों के बीच युद्ध होते रहते थे — कभी देवता भारी पड़ते, तो कभी राक्षस। एक बार देवता राक्षसों पर भारी पड़ रहे थे, जिसके कारण राक्षस पाताल लोक में भागकर छिप गए। राक्षस जानते थे कि वे इतने शक्तिशाली नहीं कि देवताओं से लड़ सकें, क्योंकि देवताओं पर महालक्ष्मी की कृपा थी। माँ महालक्ष्मी अपने आठ रूपों के साथ इन्द्रलोक में निवास करती थीं, जिसके कारण देवताओं में अहंकार भरा हुआ था।

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एक दिन दुर्वासा ऋषि पारिजात की माला पहनकर स्वर्ग की ओर जा रहे थे। रास्ते में इन्द्र अपने ऐरावत हाथी के साथ आते दिखे। इन्द्र को देखकर ऋषि प्रसन्न हुए और गले की माला उतारकर इन्द्र की ओर फेंकी। लेकिन इन्द्र मस्त थे। उन्होंने ऋषि को प्रणाम तो किया, पर माला नहीं संभाल पाए और वह ऐरावत के सिर पर पड़ गई। जब हाथी को अपने सिर में कुछ होने का अनुभव हुआ तो उसने तुरन्त सिर हिला दिया, जिससे माला जमीन पर गिरकर पैरों से कुचल गई। यह देख क्रोधित दुर्वासा ने इन्द्र को श्राप देते हुए कहा कि “तुम जिस सत्ता के अहंकार में हो, वह तेरे पास से तुरन्त पाताल लोक चली जाएगी।”

श्राप के कारण लक्ष्मी स्वर्गलोक छोड़कर पाताल लोक चली गईं। लक्ष्मी के चले जाने से इन्द्र व देवता कमजोर हो गए और पाताल में राक्षस बलशाली होकर इन्द्रलोक पाने की कोशिश में लग गए। लक्ष्मी के जाने के बाद इन्द्र देवगुरु बृहस्पति और अन्य देवताओं के साथ ब्रह्माजी के पास पहुँचे। ब्रह्माजी ने लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन की युक्ति बताई।

कार्तिक अमावस्या के दत्तक पुत्र गणेश जी साथ होते हैं। इसीलिए कार्तिक अमावस्या पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन किया जाता है। ग्यारह दिन बाद जब विष्णु जी उठते हैं, तो पुनः दीप जलाकर लक्ष्मी जी का जन्मदिवस मनाते हुए देव दीपावली मनाते हैं।

सोमवार को दीपावली पर्व को लेकर नगर के लोगों में उत्साह रहा। शाम को गणेश-लक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के साथ जमकर आतिशबाजी की गई। वहीं दीयों की टिमटिमाती रोशनी से पूरा नगर जगमगा उठा। पर्व को लेकर बच्चों में काफी उत्साह रहा।

सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस अधीक्षक आदित्य लांग्हे के निर्देश पर एएसपी सदर व सीओ सदर देवेंद्र कुमार के मार्गदर्शन में प्रभारी निरीक्षक सुरक्षा व्यवस्था को लेकर लगातार भ्रमणशील रहे।

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