चन्दौली
छोटी दीपावली पर विशेष: रूपचौदस और हनुमान जन्मोत्सव की धूम
चंदौली। प्रकाशोत्सव से एक दिन पूर्व पूरे जिले में छोटी दीपावली, रूपचौदस, नरक चतुर्दशी, काली चौदस और हनुमान जन्मोत्सव के रूप में त्योहारी माहौल देखा गया। यह पर्व कार्तिक महीने की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। वहीं, बंगाल में इसे माँ काली के जन्मदिन के रूप में काली चौदस के नाम से मनाया जाता है।
छोटी दीपावली के दिन श्रद्धालु स्नानादि से निवृत्त होकर यमराज का तर्पण करते हैं और संध्या समय दीपक जलाकर प्रकाशोत्सव मनाते हैं। रूपचौदस का यह दिन सौंदर्य संवर्धन का दिन भी माना जाता है। इस अवसर पर लोग तेल की मालिश और उबटन से स्नान करते हैं। नहाने के पानी में चिचड़ी (अपामार्ग) के पत्ते भी डाले जाते हैं, जिसे अभ्यंग स्नान कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करने के बाद इसी प्रकार तेल से स्नान किया था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इसे नरक चतुर्दशी भी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह स्नान नरक से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
कुछ स्थानों पर इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा भी होती है। धार्मिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पैर जितनी जमीन दान में लेने के लिए वामन रूप धारण किया और अंततः बलि का पराक्रम समाप्त किया। राजा बलि के ज्ञान के कारण इस दिन को ज्ञान की रोशनी से जगमगाने वाला दिन भी कहा गया।
हनुमान जन्मोत्सव वर्ष में दो बार मनाया जाता है — चैत्र पूर्णिमा और कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को हुआ था और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को उन्हें दूसरा जीवन प्राप्त हुआ, जब माता सीता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब बाल रूप हनुमान जी को भूख लगी, तो माता अंजनी द्वारा भोजन देने के बाद भी उनकी भूख शांत नहीं हुई। अचानक उन्होंने आकाश में लाल सूर्य को फल समझकर निगल लिया। इस घटना के कारण पूरे संसार में अंधकार फैल गया। क्रोधित देवताओं के राजा इंद्र ने हनुमान जी पर वज्र प्रहार किया, जिससे सूर्य देव मुक्त हो गए। इस घटना के बाद हनुमान जी को इंद्र और अन्य देवताओं से अनेक वरदान प्राप्त हुए।
मान्यता है कि रूपचौदस के दिन हनुमान जी की विधिपूर्वक पूजा और मंत्र जाप करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और अंधकार से मुक्ति मिलती है।
