चन्दौली
छह अक्टूबर को मनाई जाएगी शरद पूर्णिमा

चांदनी में रखी खीर मानी जाती है अमृत-तुल्य, सुबह प्रसाद रूप में ग्रहण की परंपरा
चंदौली। शरद पूर्णिमा का पर्व इस वर्ष आगामी छह अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। इसे कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह रात चंद्रमा की सोलह कलाओं से पूर्ण होती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं, इसलिए रात्रि जागरण कर लक्ष्मी पूजन करने की भारतीय परंपरा है।
ब्रजभूमि में यही रात रास लीला के रूप में पूजनीय मानी जाती है। इस अवसर पर श्रद्धालु चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं और खीर को खुले आसमान में रखकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि इस रात की चांदनी में अमृत बरसता है, जो आरोग्य और समृद्धि प्रदान करता है।
पंचांगानुसार पूर्णिमा तिथि छह अक्टूबर को दोपहर 12:23 बजे से प्रारंभ होकर सात अक्टूबर सुबह 9:16 बजे तक रहेगी। इसी रात लक्ष्मी पूजन, चंद्र दर्शन और रात्रि जागरण की परंपरा निभाई जाएगी। देश के कई हिस्सों में यह पर्व कोजागिरी पूर्णिमा, जबकि ब्रज में रास पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध है।
शरद पूर्णिमा भारत के विभिन्न भाषिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में अलग-अलग नामों और रिवाजों के साथ मनाई जाती है। यह केवल धार्मिक आस्था नहीं बल्कि भारतीय लोक संस्कृति का ऐसा पर्व है, जो श्रद्धा, भक्ति और स्वास्थ्य तीनों का संगम प्रस्तुत करता है। इस रात की चांदनी को शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना गया है।
‘कोजागिरी’ शब्द लोक मान्यता और भाषा व्युत्पत्ति से जुड़ा है। बंगाल, असम और मिथिला क्षेत्र में इसे “कोजागरी पूर्णिमा” कहा जाता है, जिसका अर्थ है — “कौन जाग रहा है?” परंपरा है कि इस रात महालक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जागरण करने वालों को आशीर्वाद देती हैं, इसलिए रात्रि जागरण इसका प्रमुख अनुष्ठान है।
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास लीला की थी, जिसका उल्लेख भागवत पुराण के दशम स्कंध (रास-पंचाध्यायी, अध्याय 29-33) में किया गया है। यही कारण है कि यह पूर्णिमा ब्रज उत्सवों और रास-नाट्य की आधार रात मानी जाती है।
कोजागरी परंपरा में लक्ष्मी-पूजन व रात्रि जागरण के दौरान घर-आंगन सजाकर, दीप प्रज्वलित कर श्रीलक्ष्मी-नारायण की आराधना की जाती है। कई स्थानों पर खीर मिश्रित दूध अर्पित करने की भी परंपरा है।
उत्तर-मध्य भारत में श्रद्धालु खीर को खुले आसमान में रखकर अगली सुबह प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। लोक विश्वास है कि इस रात चंद्र की किरणें अमृत-तुल्य होती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि पृथ्वी पर अनेक लोग आलस्य में पड़े रहते हैं और परिश्रम नहीं करते, जिससे वे धन की कमी से दुखी रहते हैं। तब मां लक्ष्मी पृथ्वी पर उतरीं और प्रत्येक घर के द्वार पर जाकर पुकारा — “को जागर्ति?” अर्थात “कौन जाग रहा है?” जो व्यक्ति उस रात भक्ति में जागरण कर रहा था, उसके घर मां लक्ष्मी ने प्रवेश किया और धन, सुख, समृद्धि का वरदान दिया। जो सो गए, उनके घर देवी नहीं गईं। तभी से शरद पूर्णिमा पर जागरण की परंपरा चली आ रही है।
पूजन विधि:
रात्रि में खीर बनाकर छत या आंगन में खुले आसमान के नीचे रखें, बर्तन को जाली या पतले मलमल के कपड़े से ढक दें ताकि कीट-पतंगे न गिरें। संपूर्ण रात्रि चांदनी में रहने के बाद सुबह खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। पूजन चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर लक्ष्मी-नारायण की स्थापना करें, दीपक जलाएं, धूप-अगरबत्ती करें, श्रीसूक्त या लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें, खीर बनाकर लक्ष्मी जी को भोग लगाएं, रात को चंद्रमा को अर्घ्य दें और खीर को चांदनी में रखें।
सुबह परिवार सहित उस खीर को प्रसाद रूप में ग्रहण करें। यह रात केवल पूजा का समय नहीं बल्कि प्रकाश और समृद्धि का प्रतीक है। जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं, तब यही संदेश देती हैं —
“जो जागता है, वही पाता है; जो सोता है, वह खो देता है।”
शरद पूर्णिमा को केवल पूजा और व्रत का दिन नहीं बल्कि सिद्धि और उपायों की सर्वाधिक प्रभावशाली रात्रि कहा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह रात महत्वपूर्ण मानी जाती है, जब चंद्रमा की किरणें स्वास्थ्यवर्धक और ऊर्जादायी प्रभाव प्रदान करती हैं।