वाराणसी
काशी में त्रिजटा राक्षसी बनीं ‘एक दिन की देवी’, कार्तिक पूर्णिमा के बाद होता है विशेष पूजन

धर्म नगरी काशी में आज भी जीवित है त्रेतायुग की परंपरा
वाराणसी। भगवान शंकर की नगरी काशी में हर पत्थर में ईश्वर का वास माना गया है—“कंकर-कंकर में शंकर” की इसी आस्था के बीच एक अनोखी मान्यता सदियों से जीवित है। यहाँ रावण की सेविका कही जाने वाली राक्षसी त्रिजटा को एक दिन की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह अनूठी परंपरा त्रेतायुग से चली आ रही है और आज भी भक्तों की आस्था का केंद्र बनी हुई है।
त्रिजटा मंदिर में साल में एक दिन उमड़ती है भीड़
बाबा विश्वनाथ के दरबार के निकट स्थित त्रिजटा मंदिर में वर्ष में केवल एक दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस दिन श्रद्धालु देवी त्रिजटा के दर्शन कर अपनी तपस्या को पूर्ण मानते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस पूरे महीने में भक्तगण गंगा स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं और कार्तिक पूर्णिमा के बाद के दिन त्रिजटा राक्षसी की पूजा कर अपनी साधना को पूर्ण करते हैं। कहा जाता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा से त्रिजटा की आराधना करता है, देवी उसकी हर संकट से रक्षा करती हैं।
मूली-बैंगन का भोग और विशेष पूजा
इस दिन भक्त मूली और बैंगन का विशेष भोग लगाकर त्रिजटा की पूजा करते हैं। लोकमान्यता है कि इससे देवी प्रसन्न होती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
त्रेतायुग से जुड़ी कथा
त्रेतायुग में जब रावण ने माता सीता का हरण किया और उन्हें अशोक वाटिका में रखा, तब त्रिजटा को उनकी देखभाल की जिम्मेदारी दी गई थी। त्रिजटा ने सदैव माता सीता की रक्षा की और हर संकट में उन्हें धैर्य बंधाया। उन्होंने सीता को यह भी बताया था कि भगवान राम समुद्र पर सेतु बनाकर लंका की ओर प्रस्थान कर चुके हैं।
जब श्रीराम ने रावण का वध कर माता सीता को मुक्त कराया, तब त्रिजटा ने उनसे आग्रह किया कि वह भी उनके साथ चलें। माता सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि काशी में उनकी एक दिन की देवी के रूप में पूजा होगी और जो भी श्रद्धा से उनकी पूजा करेगा, उसके जीवन से भय और संकट दूर होंगे।
धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर
काशी में स्थित त्रिजटा मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह रामायण काल की कथा और लोकविश्वास का प्रतीक भी है। इस मंदिर में होने वाला वार्षिक पूजन श्रद्धा, साहस और करुणा की उस गाथा को जीवित रखता है, जो त्रिजटा के चरित्र से जुड़ी है।