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इलाहाबाद हाईकोर्ट : पत्नी को बेटों से पहले मिलेगा पारिवारिक पेंशन का अधिकार

प्रयागराज/मिर्जापुर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि पारिवारिक पेंशन के मामले में सेवा पुस्तिका में नामित बेटों की अपेक्षा अलग रह रही पत्नी का दावा अधिक मजबूत होता है। न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए मिर्जापुर निवासी याची उर्मिला सिंह के पक्ष में फैसला सुनाया है और शिक्षा विभाग को आदेश दिया है कि उन्हें उनके दिवंगत पति की पारिवारिक पेंशन प्रदान की जाए।
उर्मिला सिंह के पति प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2016 में सेवानिवृत्त होने के बाद से 2019 में उनके निधन तक उन्हें नियमित पेंशन मिलती रही। इस दौरान पारिवारिक अदालत के आदेश पर याची उर्मिला सिंह को आठ हजार रुपये प्रति माह का गुजारा भत्ता भी मिल रहा था।
पति की मृत्यु के बाद जब याची ने पारिवारिक पेंशन की मांग की, तो शिक्षा विभाग ने यह कहते हुए उसका आवेदन खारिज कर दिया कि मृतक कर्मचारी ने अपनी सेवा पुस्तिका में पत्नी का नाम दर्ज नहीं कराया था, बल्कि बेटों के नाम शामिल थे।
इस फैसले के खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि वह अपने पति से मिलने वाले गुजारा भत्ते पर पूरी तरह निर्भर थीं। लिहाजा, उन्हें पारिवारिक पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करते हुए याचिका को मंजूरी दी और स्पष्ट किया कि जीवन निर्वाह के लिए निर्भर पत्नी का पारिवारिक पेंशन पर वैधानिक अधिकार है, चाहे वह सेवा पुस्तिका में नामित हो या नहीं।