धर्म-कर्म
आज मनाई जाएगी शरद पूर्णिमा

वाराणसी। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, जिसे शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, इस वर्ष विशेष महत्व लेकर आ रही है। यह पर्व इस वर्ष सोमवार, 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा। ज्योतिषीय, आयुर्वेदिक व धार्मिक दृष्टि से यह रात स्वास्थ्य, धन और संतान सुख का वरदान लाने वाली मानी जाती है।
वाराणसी में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी रश्मियों से अमृत तत्व की वर्षा होती है। मान्यता है कि इस रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर त्रैलोक्य भ्रमण पर निकलती हैं और यह पूछती हैं— “को जाग्रयेति” अर्थात “कौन जाग रहा है?” जो भक्त जागते हुए मिलते हैं, उन्हें मां लक्ष्मी धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं। इसलिए इस रात को जागरण का विधान है और इसे कोजागरी व्रत की रात भी कहा जाता है।
धार्मिक व वैज्ञानिक दृष्टि से महत्व
ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय के अनुसार, आश्विन मास की पूर्णिमा अन्य पूर्णिमाओं में विशेष होती है। वर्षा ऋतु के बाद आकाश पूर्ण स्वच्छ होता है, जिससे चंद्र रश्मियाँ पृथ्वी पर निर्बाध रूप से पड़ती हैं और अमृत तत्त्व का संचार करती हैं। आयुर्वेद में भी माना जाता है कि चंद्रमा की रश्मियों में औषधीय गुण होते हैं, जो वनस्पतियों में प्राणदायिनी और रोगनाशक शक्ति उत्पन्न करते हैं। इस कारण इस रात खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की रश्मियों में रखने की परंपरा है।
इस अवसर पर भगवान विष्णु व भगवती लक्ष्मी का पूजन करके खीर भोग लगाया जाता है। ऐसा करने से खीर में अमृतरूपी चंद्रमा की रश्मियाँ समाहित हो जाती हैं और इसका सेवन दुख, दरिद्रता व अनेक शारीरिक रोगों से मुक्ति दिलाता है।
ज्योतिषीय वैज्ञानिक दृष्टि
खगोलीय दृष्टि से चंद्रमा स्वयं प्रकाश नहीं देता, बल्कि सूर्य की सहस्त्ररश्मियों से प्रकाशित होता है। आश्विन पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सभी १६ कलाओं से पूर्ण दिखाई देता है और पृथ्वी पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। इसे “सबसे स्वच्छ पूर्णिमा” और “सबसे तेज रश्मियों वाली पूर्णिमा” माना जाता है।
विशेष संयोग
इस वर्ष शरद पूर्णिमा सोमवार को है क्योंकि आश्विन मास की शुक्ल पूर्णिमा 6 अक्तूबर के दोपहर 11:26 बजे प्रारंभ होकर 7 अक्तूबर को 9:34 बजे तक रहेगी। सोमवार के संयोग से इस पूर्णिमा का महत्व और भी अधिक फलदायी माना जा रहा है।
वाराणसी में यह पर्व न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बल्कि आयुर्वेद व खगोलीय दृष्टि से भी अत्यंत विशेष महत्व रखता है।